छत्तीसगढ़ में चित्रित शैलाश्रय - प्रागैतिहासिक काल Painted Rock Shelters in Chhattisgarh - Prehistoric Period

छत्तीसगढ़ में चित्रित शैलाश्रय - प्रागैतिहासिक काल
छत्तीसगढ़ में चित्रित शैलाश्रय - प्रागैतिहासिक काल 


 छत्तीसगढ़ प्रागैतिहासिक काल एवं मानव जीवन के जन्म और विकास को धरोहर के रूप में  आज भी अपने पहाड़ों और  गुफाओं सजोकर रखा है। जंहा से पता चालता है प्राचीन काल में मानव कितने कल्पनाशील  और बुद्धजीवी  थे। 

छत्तीसगढ़ में प्राप्त शैलचित्र युक्त शैलाश्रय प्राचीन शैलाश्रय में से एक माना जाता है, इसका समय  लगभग      ईसापूर्व  30 हजार वर्ष  निर्धारित की गयी है। छत्तीसगढ़ में सबसे पहले चित्रित शैलाश्रयों की खोज 1910 में    एडरसन द्वारा किया गया था।  "इंडिया पेटिंग्स" में 1918 में रायगढ़ जिले के सिंघनपुरी के शैलाश्रय का प्रकाशन हुआ वही "इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका" के 13 अंक में इसका प्रकाशन हुआ।   
     
     अमरनाथ दत्त ने 1923 से 1927 के मध्य रायगढ़ जिले एवं उसके समीपस्थ क्षेत्रों के शैलचित्रों का सर्वेक्षण किया। इनके बाद डॉ डी. एन घोस डी एच गार्डन  और फिर लोचन प्रसाद पांडेय ने इसका व्यापक सर्वेक्षण किया। 

सिंघनपुर -
शिंघनपुर शैलचित्र

छत्तीसगढ़ में प्राचीनतम शैलाश्रय सिंघनपुर की पहाड़ियों में स्थित है। सिंघनपुर रायगढ़ बिलासपुर रोड में रायगढ़ से 20 किमी पश्चिम की ओर स्थित है। यहाँ की चित्र धीरे धीरे धुंधली होती जा रही है। यहाँ  सीढ़ीनुमा पुरुष आकृति , मतस्याँगना शिकार करने का दृश्य पंक्तिबद्ध नर्तक टोली एवं मानवाकृतियां सम्मलित है। 

इस शैलाश्रय की मतस्याङ्गना कंगारू सदृश्य पशु, गोह एवं सर्पाकृति अपने में अद्वितीय है। इस शैलाश्रय में कुल 23 कलाकृतियां देखि गयी थी जिसमे से अब कुल 13 बची हुए है।  यहाँ की सीढ़ीनुमा पुरुष आकृति को ऑस्ट्रेलिया में प्राप्त सीढ़ीनुमा पुरुष आकृति  से की जाती है।  इसके साथ ही विविध कलाकृति जिसमे वनभैसा , बन्दर, छिपकली  एवं अन्य आकृतियां भी बना है जो आदिमानव की कलासंस्कृति को  बताती है। 

कबरा पहाड़ -

छत्तीसगढ़ी भाषा में कबरा का अर्थ धब्बेदार होता है। छत्तीसगढ़ में कबरा पहाड़ रायगढ़ जिले के मुख्यालय से 8 किमी पूर्व में स्थित है।   कबरा पहाड़ के चित्र गैरिक रंग के है।  यहां का चित्र अन्य पह्ड़ा के चित्रों से सुरक्षित और उत्तम प्रकार के है।  
काबरा पहाड़ी शैलचित्र

 यहाँ जंगली भैसा, कछुआ , पुरुषाकृति ,ज्यामिति अलंकरण सरिसर्प ,मानव हाथपाकडे हुए पंक्तिबद्ध हाथ पकड़े हुए है ,बारहसिंघा, गोह ,का अंकन पूरक शैली में है। प्रदेश के राजधानी रायपुर से 217  किमी की दुरी पर स्थित है। 
बसनाझर -
रायगढ़ जिला सिंघनपुरी से 17 किमी दुरीदक्षिण पश्चिम  पर स्थित है।  ये ग्राम बसनाझर में 300 से अधिक शैलचित्र प्राप्त हुए है जिसमे मुख्यरूप से नृत्य ,का दृश्य ,ज्यामितीय आकृति ,हाथी, गैंडा , आखेट दृश्य , आदि शैलचित्र प्राप्त हुए है। 
basanajhar shailchitr


ओंगना -

रायगढ़ से 72 किमी दूर उत्तर कीओर धरमजयगढ़ के निकट ओंगना ग्राम के पास बानी पहाड़ी पर स्थित शैलाश्रय की संख्या 100 से अधिक है।  यंहा बड़े कुकुद वाला बैल ,और उनके समूह ,और मानव के सिर पर बना विशेष प्रकार का  नृत्य दृश्य का अंकन है। 

कर्मागढ़ - 
रिकगढ़ से 30 किमी दूर कर्मगढ़ के शैलाश्रय में 325 से अधिक चित्रांकन मिलता है  जंहा ज्यामिति अलंकरण ,व बहुरंगी आकृतियों का अंकन है।  

खैरपुर - 
रायगढ़ से 12 किमी उत्तर की और स्थित है।  यंहा कॉल जलाशय के निकट पहाड़ियों पर नृत्य और पशुपक्षी  का अंकन है

बोतलदा -
बिलासपुर रायगढ़ मार्ग पर खरसिया से 8 किमी पश्चिम में बोतलदा ग्राम है ,इस ग्राम के उत्तर में लम्बी पहाड़ी शृंखला है  जिसकी उचाई 2000 फिट है जिसमे सिंह गुफा है।  यंहा की चित्रांकन मध्यकाल से ऐतिहासिक काल तक  के है इसमें पशुआकृति ,शिकार दृश्य ज्यामिति अलंकरण , आदि है। 

भंवर खोल -
सोनबरसा नामक गॉव में स्थित पहाड़ी  अमरगुफा  नाम से विख्यात है। जंहा पर ज्यामिति ,मानव आकृति ,आखेट दृश्य ,का अंकन है।  

सतीघाट - 
यहाँ पर कृषि परिदृश्य को दर्शाया गया है यंहा पर शैलाश्रय प्राप्त हुए है जिसमे किसान को हाथ में हल रखे दर्शया गया है। इसके अतिरिक्त पशु आकृति का अंकन  है।  

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गाताडीह - 
यंहा शिकार दृश्य , मानवाकृति ,पशु आकृत शैलाश्रय मिलता है। 

सिरोली डोंगरी - 
सारंगढ़ के उत्तर पश्चिम में स्थित है यहाँ के शैलाश्रय में ही शैल चित्र पाये गये जिसमे मानवाकृति शिकार दृश्य व् पशुओ का अंकन ये चित्र गैरिक रंग के है।  
 
बैनीपाठ -
रायगढ़ से 32 किमी स्थित बांस के जंगलों के बिच ये शैलाश्रय स्थित है यंहा की अधिक चित्र धुंधली हो गयी है। यंहा ज्यामिति अलंकरण बहुतायत में मिलता है।

उड़कुड़ा - 
चारामा तहसील के उड़कुड़ा ग्राम में स्थित है। यंहा मेगा थिलिक अवशेष तथा लघु अश्मोपराकरण के साथ शैलाश्रय  है।  जोगीबाबा का स्थान चंदपारखा व कचहरी से प्राप्त शैलचित्रों में हथेली पैरों के चिन्ह पशु  आकृति और धनुर्धारी प्रमुख है। 

गारागौड़ी - 
यहाँ की शैला चित्र धुंधली हो चुकी है ये चरम से कांकेर जाने वाले मार्ग में चारामा से 9 किमी दक्षिण में कनपोड़  से 12 किमी पर स्थित है है  यंहा शीतला माता नामक स्थान पर शैल चित्र का अकन मिला है।  

खैरखेड़ा - 
यहाँ पर से शैल चित्रों के रूप में मानवाकृति , हथेली,धनुर्धर ,पशु आकृति प्राप्त हुए है यहाँ की शैलाश्रय को बालेरा के नाम से जानते है। 

चितवा डोंगरी - 

दल्लीराजहरा मार्ग में सहगांव के पास स्थित है। यंहा के अधिकांश चित्र लाल गेरू रंग के बने हुए है ,यंहा के चित्र में चीनी नस्ल के एक व्यक्ति का चित्र है जो खच्चर के ऊपर दिखाई दे रहा है।  इसके साथ ही ड्रैगन की आकृति के सामान भी दिखाई पड़ती है।  यहाँ के शालचित्रों में कृषि जीवन से सम्बंधित चित्र मुख्यरूप से दिखाई देती है।  

कोहबउर- 
जनकपुर क्षेत्र में मुरेरगढ़ के पहाड़ियों में स्थित शैलाश्रय शैलचित्र प्राप्त हुए है जंहा पर आखेट दृश्य , ज्यामिति , मानवाकृति , पशु आकृति मिलता है। 

गोडसार - 
सोनहत क्षेत्र में बदरा की पहाड़ियों में शैलाश्रय शैलचित्र प्राप्त हुए है जिसे गोडसार कहा जाता है।  यहाँ पर जीवन से जुडी आकृतिया प्राप्त होती  है जो की सफ़ेद रंग में चित्रित हुआ है। 

गोटिटोला - 
यंहा सीताराम गुढ़ा पर पौराणिक शैलाश्रय प्राप्त हुआ है जिसके चित्रों में रामकथा से सम्बंधित चित्रों का भी अंकन है। इसके आलावा और अन्य जगह जहाँ शैल चित्र प्राप्त हुए है   जो की क्लुगांव, कान्हागांव, इसके अतिरिक्त बस्तर जिले में केशकाल लिंगदारीहा सरगुजा जिले में  सितलेखनी , ओढ़गी कुदरगढ़ आदि अनेक स्थानों पर शैलाश्रय शैलचित्र प्राप्त हुए है।   

लिखाआरा - जशपुर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर लिखाआरा से डेढ़ लाख साल पुराना आदिमानव के हथियार प्राप्त हुए है। जिसका उपयोग कंदमूल खोदने और सीकर के बाद मांस छिलने के लिए किया जाता था। इसके पहले ही  यहां 20 हजार साल पुराना आदिमानव द्वारा बनायीं गई पेंटिंग भी प्राप्त हुए है। यहां की पहाड़ियों की कंदराओं में शैलचित्र शैलाश्रय प्राप्त हुआ है जिसमे आदिमानव रहा करते थे। यहाँ शैलाश्रय ,शैलचित्र महापाषाण कला के  औजार के अवशेष प्राप्त हुए है। 
लिखाआरा के शैलाश्रय के पास से ही हस्त कुल्हाड़ी ,और हस्त कुठार भी प्राप्त हुए है प्राप्त कुल्हाड़ी को पुरातात्विक डेढ़ लाख साल पुराना बता रहे है। 

ग्राम मोहदी -महासमुंद जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर बागबाहरा तहसील के अंतर्गत  मोहदी के निकट महादेव पठार में एक शैलाश्रय स्थल (पेंटेंड रॉक शेल्टर) की खोज की गयी है जिसमे पुरातात्विक महत्त्व के शिअल चित्र मिले है। 
इन शैल चित्रों में नृत्य करते मानव समूह ,वानर ,सूर्य ,और चन्द्रमा सहित ज्यामितीय आकृतिया लालगेरुए रंग से निर्मित है।  अबतक महासमुंद जिला के अंतर्गत प्राप्त पहला चित्रित शैलाश्रय है।  यहाँ उपलब्ध शैल चित्रों के आधार पर  इस क्षेत्र में मानव सभ्यता लगभग मध्य पाषाण काल संभावित है।   

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