छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास /Ancient History of Chhattisgarh-cggk

 प्रागैतिहासिक काल :- छत्तीसगढ़ अर्थात दक्षिण कोसल का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। इसके प्रागौतिहासिक काल को  पहले पंडित लोचन प्रसाद पांडेय ने "मानव जाती की सभ्यता का जन्म स्थान माना है "  इसका प्रमाण प्राचीनतम आदिवासी क्षेत्र जो की रायगढ़ जिले की सिंघनपुर , कबरापहाड ,खैरपुर ,तथा कर्मगढ़ है यहाँ के गुफाओ एवं शैल चित्रों के रूप में अपना प्राचीनतम स्मृति का ज्ञान कराती है।  यहाँ की गुफाओ में उकेरे गए शैल चिंत्रो की खोज  सबसे पहले खोज इंजिनियर अमरनाथ दत्त ने  1910 किया था  सिंघनपुरी की गुफाओ में लालरंग से पशुओ और सरीसृपों तथा टोटेमवादी  चिन्हो का रूपांकन है जिसमे मनुष्य के चिंत्रों को  रेेेखा के द्वारा खिंच कर बनाया गया है। 
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  एक चित्र में व्यक्तियों के समूह को हाथ में लाठिया और मुकदर लिए हुए एक बड़ा पशु का पीछा करते दिखया गया। 
पर्सीब्राउन  अनुसार  "चित्र अत्यंत प्राचीन काल के है और इनमे कुछ चित्र लिपियाँ अंकित है "
हेडन  यहाँ प्राप्त कतिपय अपखंडित अकीक शल्कों को आरम्भिक पाषाण युग के पुरापाषाण युगीन औजार कहा है इसके अतिरिक्त एडरसन द्वारा खोजा गया हेमेटाइट पेसल (मुशल )की तुलना मोहनजोदड़ो से प्राप्त बेलनाकार हेमेटाइट से की जाती है

               सिंघपुर के चित्र शैली की स्पेन की कतिपय गुफाचित्रों से  विलक्षण मेल खाती है।  परतु उसमे ईऑस्ट्रेलिया  चित्रों से भी सादृश्य दिखाई पड़ती है।

बेलपहाड़ स्टेशन  (सम्बलपुर उड़ीसा ) यहाँ पार विक्रम खोल नमक पहाड़ी पर खुदे हुए शिलालेख का पंडित लोचन प्रसाद पण्डे ने सबसे पहले पता लगाया था जिसे पुरतात्विक विद्वान् श्री काशीप्रसाद जायसवाल ने इसका समय ईसा पूर्व. 4000 से 7000 वर्ष ठहराया उसके अनुसार उसकी लिपि मोहनजोदड़ो की लिपि और ब्राम्ही लिपि के बिच की लिपि मानी  गयी है विद्वानों के अनुसार ब्राम्ही लिपि फोनिशियन और यूरोपियन की जननी है इससे महाकोशल की प्रागैतिहासिक सभ्यता पर प्रकाश पड़ता है।

रायगढ़ सिंघनपुर के चित्रित गह्वरों की खोज करते समय रायबहादुर श्री मनोरंजन घोस को 5 पूर्वपाषाण काल की कुल्हाड़ी प्राप्त हुआ।
चितवाडोंगरी राजनांदगाव में बघेल और रमेन्द्रनाथ  मिस्र को भूरे रंग से चित्रांकित नए शैलचित्र की खोज किया गया जिसमे मानव आकृति और पशु एवं अन्य रेखांकन है।

  छत्तीसगढ़ के  महापाषाण युग  के स्मारक दुर्ग ,रायपुर , सिवनी , रीवा ,जिले में पाए गए है।  दुर्ग जिले में स्थित धनोरा में एक स्थान पर 500 महापाषाणिक स्मारक मिले है। जिन्हे 4 वर्गों में विभाजन कियागया  है।  1956 -57 में  यहाँ प्रथम वर्ग के तीन तथा दूसरे वर्ग के एक स्मारक की उत्खनन किया गया।

ताम्रयुगीन   सभ्यता के अवशेष छत्तीसगढ़ में प्राप्त हुए है। दुर्ग जिले के धनोरा गावं में ताम्रयुगीन अवशेष प्राप्त हुए है दुर्ग जिले केहि सोरर ,चिरहरि और कबराहाट में भी ताम्रयुगीन निर्मित आवास का पता चला है  धमतरी से बालोद मार्ग के कईगांवों में ताम्रयुगीन शव स्थान मिले है।

डॉ. मोरेश्वर गंगाधर दीक्षित ने इन स्थानों का सर्वेक्षण एवं उत्खनन कार्यप्रारम्भ का प्रयास किया था।
पूर्वपाषाण एवं उत्तर पाषाण काल के अवशेष छत्तीसगढ़ की सीमा के आसपास के क्षेत्रों में मिले है।  नर्मदाघाटी , बैनगंगा घाटी में अवशेष मिले है। रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में पांच कुल्हाड़ी मिले है।
उत्तरपाषाण काल के कराघातक हथौड़ा प्राप्त हुआ जो की उत्तरपाषाण काल का महत्वपूर्ण औजार मानाजाता है जो की नांद गॉंव के अर्जुनी के पास बोन टीला से प्राप्त हुआ है।

वृहत्पाषाण काल दुर्ग में शव स्थान मिले है पुरतात्विक विभाग और इतिहास विभाग रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय द्वारा प्रो. काम्बले के सर्वेक्षण दाल को तीर फलक  प्राप्त हुआ जो की महंत  घासीदास संग्रहालय रायपुर में रखा गया है।


साक्ष्य स्थलो से प्राप्त अवशेष
 स्थल                जिला                     प्राप्त अवशेष
सिंघनपुर           रायगढ़          शिकार करता हुआ मानव ,                                            सीढ़ी नुमा मानव आकृति
कबरा पहाड़      रायगढ़।        पंक्तिबद्ध मानव समूह ,रंगीन                                       चित्रकारी ,,छिपकली,घड़ियाल,
सोरर करहि भदर    बालोद      पाषाण घेरा
धनोरा               दुर्ग           महापाषाणीक स्मारक
गढ़धनोरा         बस्तर          पाषाण कालीन औजार

प्रगैतिहासिक कालीन अन्य स्थल -
जिला                        स्थल
रायगढ़               करमागढ़ ,बसनाझर, ओंगना,बोतलदा,
                              लेखाभाड़ा भावरखोल,सोनबरसा,
बस्तर                     गढ़धनोरा , गढ़चन्देल,राजपुर
बालोद                  चिरहारी, सोरर ,करहिभदार

विशेष तथ्य -

  • छत्तीसगढ़ के प्रागैतिहासिक काल के सबसे ज्यादा शैल चित्र रायगढ़ जिले से मिले है।
  • प्रदेश में शैलचित्रों का खोज सर्वप्रथम 1910 में ब्रिटिश इतिहासकार एंडरसन के द्वारा की गई ।
  • नावपाषाण काल के अवशेषों की सर्वप्रथम जानकारी रामेन्द्र नाथ व डॉ भगवान सिंह ने प्रदान की ।
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