छत्तीसगढ़ के पारम्परिक आभूषण /Traditional Jewellery of Chhattisgarh

                                   छत्तीसगढ़ के आभुषण 

छत्तीसगढ़ की संस्कृति में आभूषण एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।  प्राचीन समय से ही छत्तीसगढ़ की पहनावा में आभूषण एक विशेष स्थान  है। यहाँ की सौंदर्य कलात्मकता बर्षो से अपना अलग पहचान  बनता है। 

                    छत्तीसगढ़ का प्रचलित"गोदना" जिवंत पर्यन्त  आभूषण के रूप में माना जाता है।  ये जनजाति में अनिवार्य माना जाता है। इसके आलावा कौड़ी, बांस , फुल ,पंख पत्थर  इन सभी का प्रयोग आभूषण के रूप में भी किया जाता है। जो सौंदर्य  पारम्परिक आभूषण है। इसके आलावा सोने, चांदी , कांसे ,एवं  धातु ,रत्न ,का भी प्रयोग आभूषण में  किया जाता है।
                                           
 छत्तीसगढ़  के  पारम्परिक आभूषण :   छत्तीसगढ़ के प्रमुख आभूषण जो की अलग अंगो के लिए अलग - अलग है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में आभूषण एक पृथक पहचान बनती है।सिर जुड़े में लगाने वाले आभूषण ,कान में पहने वाले आभूषण ,नाक ,गला ,हाथ ,पैर कमर जैसे अंगों में पहने जाने वाले  आभूषण जिसमें स्त्रियां  सोलह सिंगार के लिए  करती है। 
  सिर/ बालों में लगाने वाला आभूषण - 

सिंघी - ये सिर में पहने जाने वाले सिंघ के जैसा होता है। 
 पटिया:-
मांगमोति  -   बालों  में लगाया जाता है।
बेनीफुल - ये  बालों में जुड़ा में लगाया जाता है।
माथे पर - माथे पर टिकुली (बिंदिया ) लगाया जाता है
कान में पहने वाला आभूषण : - 
ढार -
तरकी 
खिनवा 
बारी 
लुरकी 
लवांग 
फुल 
खूंटी
तीतरी
नाक में पहने वाला आभूषण :-
फुल्ली ,नथ ,नथनी ,बुलाक ,लवंग 

गला में पहने वाला आभूषण  -
सुता  पुतरी  कलदार , सुर्रा सकरी ,तितली, हमेल, हसली, रूपया,

हाथों में पहने वाला आभूषण  - 
चुरी, बहुटा,कड़ा ,हरैया ,बनूरिया ,ककनीं , `पटा , पहुंची , एठी ,मुंदरी

कमरमें पहने वाला आभूषण  - करधन (कमरबंध )

पैर में पहने वाला अभुषाण - 
टोडा , साटी  ,  कटहर , स चुरवा , चुटकी , बिछीया 

छत्तीसगढ़ में बच्चों के लिए भी कुछ आभूषण होते है जिसे बच्चों को पहनाया जाता है। 
बच्चे के आभूषण -  बगनखा ,ठुमड़ा ,मूठला ,मुंगुवा, ताबीज 

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