भारत में विदेशी आक्रमण
हिन्द-यूनानी (इण्डोग्रिक )-
सर्वप्रथम भारत में यूनानी आक्रमण हुआ। जो सर्वप्रथम हिन्दुकुश पर्वत पार किया ये अफगानिस्तान में अमु दरिया (ऑक्सस) में निवास करते थे।
भारत पर आक्रमण करने वाले पहले यूनानियों को हिन्द-यूनानी (इण्डोग्रिक ) या बैक्ट्रियाई यूनानी कहलाये। सबसे पहली ईरान के हकबनी वंश के डेरियस ने आक्रमण किया।
भारतीय सिमा में पहले प्रवेश करने वाले शासक डेमेट्रियस प्रथम को जाता है। इसने १८३ ई. पू. में भारत के पंजाब और सिंध प्रदेश में अधिकार किया
ये पजाब के शाकाल (आधुनिक सियालकोट ) में अपनी राजधानी बनाई। इन्होने भारतियों के राजा की उपाधि धारण की।
165 -145 ई. पू. के बिच यूनानियों का सबसे प्रसिद्द शासक मिनाण्डर हुआ वह मिलिंद के नाम से भी जाना गया यूनानियों ने भरी मात्रा में सिक्के प्रचलित किये। जिससे पता लगाया जा सकता है की सिक्के किस शासन काल के है।
सर्वप्रथम सोने के सिक्के प्रचलित किये।
हिन्द यूनानी शासकों ने भारत के पश्चिमोत्तर सिमा प्रान्त में यूनानी कला का संरक्षण किया जिसे हेलेनिस्टिक आर्ट कहते है। ये कांधार कला का मिश्रित रूप है।
शक /सीथियन - 90 ई. पू.
- यूनानियों के बाद शक आये ,शकों की पांच सखायें थी और प्रत्येक शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में थी।
- इनकी दूसरी शाखा पंजाब तीसरी मथुरा चौथ शाखा पश्चिम भारत और पांचवी शाखा ऊ परी दक्कन में थी।
- शक सीथियन के जाते था तथा भारत में ये क्षत्रप के कहलाये
- शकों का प्रशिद्ध राजा रुद्रदामन था। उन्होंने सुदर्शन झील का पुनः निर्माण कराया।
- रुद्रदामन ने पहला संस्कृत अभिलेख जारी कराया।
- जूनागढ़ अभिलेख में रुद्रदामन जानकारी मिलती है। ये संस्कृत भाषा की सबसे प्राचीन अभिलेख है
- उसका शासन सिंध ,कोंकण ,नर्मदा घाटी ,मालवा ,काठियावाड़ ,और गुजरात में रहा।
- जूनागढ़ अभिलेख गुजरात के गिरनार पर्वत पर स्थित है। 150 ई. की है
- शक वंश का अंतिम शासक रुद्रसिंह तृतीय था जिसे गुप्त शासक चंद्रगुत विक्रमादित्य ने मार कर प्रथम बार मालवा क्षेत्र में व्याघ्र शैली में चंडी के सिक्के चलवाये।
- शैको के अधिपत्य के बाद पार्थियाई का अधिपत्य हुआ। ये मूल रूप से ईरानी निवासी थे।
- सबसे प्रसिद्द पार्थियाई शासक गोडोफर्नीज हुआ इसके शासन काल में सेंट टॉमस ईसाई धर्म की प्रचार के लिए भारत आया था।
- भारत का प्रथम पार्थियन शासक माउस था।
- भारत में पार्थियन साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मिथ्रेडेट्स प्रथम था। (171 -130 ई. पू )
- अभिलेख -तख़्त -ए -बही पेशावर में है।
- इनकी मृत्यु तमिलनाडु में हुई
- पार्थियाई के बाद कुषाण वंश की स्थापन हुई।
- इसके संस्थापक कुजुल कडफिसेस ने की थी।
- ये आगेचल कर यूची कहलाये।
- कुषाणों ने सबसे ज्यादा तांबे के सिक्के चलाये।
- इनकी राजधानी पाटलिपुत्र /विदिशा रही बाद इनकी राजधानी मथुरा बानी।
इस वंश का प्रसिद्द राजा कनिष्क था जिसने अपने राजरोहण के समय 78 ई में शक संवत चलाया। इसकी राजधानी पुरुस्पुर पेशावर थी। ये महायान से सम्बन्ध रखते थे। इसके काल में चौथी बौद्ध सभा काआयोजन हुआ। इनके दरबार में पार्श्व वसुमित्र और अश्वघोष जैसे बौद्ध दार्शनिक थे कनिष्क के समय गांधार शैली का विकाश हुआ।
गुप्त वंश
श्रीगुप्त -240 -280 ई. ताम्र अभिलेख में श्रीगुप्त का उल्लेख गुप्त वंश के आदिराज के रूप में किया गया है। इसने महाराजा की उपाधि धारण की। इत्सिंग के अनुसार एक मंदिर का निर्माण कराया जिसके लिए 24 गाँव दान में दिया था।
घटोत्कच - 280 -319 ई. श्रीगुप्त ने घटोत्कच को अपना उत्ताराधिकारी बनाया जिसने महाराजा की उपाधि धारण की थी रिद्ध पुरताम्रपत्र में इसे गुप्त वंश का प्रथम शासक माना गया है।
चन्द्रगुप्त प्रथम - ३१९-335
गुप्त वंश के संस्थापक श्रीगुप्त को माना जाता है परन्तु गुप्तवंश के प्रथम राजा के रूप में चन्द्रगुप्त प्रथम को माना जाता है। इसने 319 ई में गुप्त सवंत की स्थापना की। चन्द्रगुप्त प्रथम ने माहाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण की। गुप्त वंश के पहले शासक थे जिसने चांदी के सिक्के चलाये।
समुद्रगुप्त - ३३५-380 ई
समुद्रगुप्त चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र था इन्हे भारत का नेपोलियन कहा जाता है। इनको 100 युद्धों का विजेता कहा जाता है। इनके विजयों का विवरण हरिषेण के प्रस्सति ग्रन्थ प्रयाग प्रसस्ति में इलाहाबाद स्तम्भ लेख में मिलता है। समुद्रगुप्त वीणा बजने में माहिर थे इससे उसके संगीत प्रेमी होने का पता चलता है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय -380 से 412 ई.-
इसके शासन काल को गुप्त वंश का स्वर्ण युग मन जाता है। इसके समय गुप्त वंश का शासन चरमत्कर्ष पर था। इसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की इसके दरबार में नव रत्न थे जिसमे कालिदास प्रसिद्द था। इनके शासन काल में चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था इसने अपनी दूसरी राजधानी उज्जैन में स्थापित की थी। इसके पास ३२ पुतलियों का सिहासन था। इनके चांदी के मुद्राओ पर देवश्री लिखा जाता था
कुमार गुप्त 414 -455 ई.
कुमार गुप्त ने महेन्द्रादित्य की उपाधि धारण की। इनके द्वारा संचालित स्वर्ण मुद्राओं पर इनकी उपाधि अंकित थी। इनके स्वर्ण सिक्कों को गुप्तकुलामल चंद्र कहा जाता था। इसने अश्वमेध यज्ञ किया। और अश्वमेध मुद्रा भी चलाया। इनके शासन काल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापन की गयी
इनके समय में सर्वाधिक गुप्त कालीन अभिलेख प्राप्त हुए है जिनकी संख्या 18 है। इनके समय का सबसे बड़ा ढेर बयाना मुद्रभण्डार (राजस्थान ) भरतपुर से प्राप्त 623 स्वर्ण मुद्रा है। इनके समय पुष्यमित्र नमक जातियों में आक्रमण किया इसका उल्लेख स्कंध गुप्त के भीतरी अभिलख में मिलता है। जिनको पराजित करने के लिए अपने पुत्र स्कंध गुप्त को भेजा।
स्कन्द गुप्त 455 - 467 ई. -
ये गुप्त वंश का अंतिम प्रतापी राजा था कोहम अभिलेख से विदित होता है की इसने शक्रादित्य की उपाधि धारण की थी। हूणों का आक्रमण इसके शासन काल का महत्वपूर्ण घटना थी जिसने गांधार प्रदेश के कुछ भागों में अपना अधिकार जमा लिया था। जूनागढ़ अभिलेख से पता चला है की स्कन्द गुप्त न केवल योग्य परंतू एक आदर्श शासक थे। सौराष्ट्र प्रान्त में पर्णदत्त को अपना राज्यापाल चुना था। इसने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार कराया।
परवर्ती गुप्त शासक
- पुरुगुप्त - 467 -476 ई.
- कुमार गुप्त द्वितीय -
- बुद्ध गुप्त
- नरसिंह गुप्त
- भानुगुप्त
- वैन्य गप्त
- कुमारगुप्त तृतीय
- विष्णु गुप्त - गुप्त वंश का अंतिम शासक था।
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