छत्तीसगढ़ में मराठा कालीन प्रशासनिक अधिकारी-CGGK



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छत्तीसगढ़ में मराठा शासन काल में सूबा प्रशासन आने के बाद मराठो ने प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी की न्युक्ति की जिससे कर वसूली और लगान वसूली में आसानी होने लगी।  सभी सूबा में एक सूबेदार और उनके निचे बहित से कर्मचारी कार्य किया करते थे सभी कर्मचारी का काम बांटा हुआ था।
मराठा कालीन प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारी -
  1. सूबेदार -                                                                                                                                            मराठा शासन काल में सर्वोच्च अधिकारी होता था जिसकी न्युक्ति मराठा राजकुमार या राजा किया करता था।  ये पूरा सूबे का प्रमुख होता था इन्हे मृत्युदंड देने का अधिकार था। 
  2. कमाविशदार- शासन की सुविधा के  लिए छत्तीसगढ़ सूबा को 27 परगना में बांटा गया था।  जिसका प्रमुख कमाविशदार कहलाता था । उन्हें अपने क्षेत्र में सैनिक ,असैनिक ,दीवानी ,फौजदारी और माल सम्बन्धी अधिकार प्राप्त थे।                                                                                                                          ये सूबेदार के प्रति जिम्मेदार होते थे। और उनके आदेश पर शासन चलते थे। कमाविश दार को अपने क्षेत्र में  शांति और सुव्यवस्थ की स्थापना करना होता था और साथ ही राजस्व की वसूली और सरकार के हितों की सुरक्षा का कार्यभार वहां करता था। 
  3. फड़नवीश - फड़नवीश का कार्य आय -व्यय का हिसाब रखना था।  इनका एक सहायक होता था। जिसे नायब फड़नवीश   भी कहा जाता था। 
  4. बढ़कर -    बढ़कर का काम परगना  की सामान्य स्थिति और फसल की जानकारी और अन्य मामलों की जानकारी कामविश दार तक पहुंचना। 
  5. गौंटिया -  छत्तीसगढ़ में गौंटिया की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है।  गांव प्रमुख होता है।  यह पद वंशानुक्रम चला आता था।  गौटिया गावं प्रमुख होने के नाते गॉव के जनता काविशेष ख्याल रखे। और लगान निर्धारण कर लगान वसूली की जिम्मेदारी रखता था।                                                                CG PSC सॉल्वड QUESTION पेपर 2011                                                                                                                                                  एंडरसन के अनुसार  - वह गावं के मामलों में निगरानी करता था।  गाँव का प्रमुख मजिस्ट्रेट होता था और गांव वालों के प्रतिनिधि भी हुआ करता था।
  6. पटेल -  गांव में भूमिकर वसूलकर शासन तक पहुँचता था।  
  7. बरार पण्डे- अधीक्षक के खजाने जमा होने वाले रकम का हिसाब रखता था। और प्रत्येक गाँव का दौरा कर  सूचना अनुशार वह लगान रजिस्टर त्यार करता था।  प्रत्येक गांव में कर निर्धारण रजिस्टर के हिसाब से होता था।  
  8. पोतदार - इनकी न्युक्ति बरार पण्डे के सहयोग के लिए किया जाता था।  
  9. पंडरी पण्डे - (आबकारी राजस्व निरीक्षक) यह अधिकारी ग्रामो में मादक पदार्थो से होने वाले आमदनी का हिसाब रखता था।  
  10. आमीन - राजस्व सम्बन्धी हिसाब के शुद्धि  लिए हर परगना में अमिन क न्युक्ति की जाती थी।  
  11. पण्डया - अस्थायी राजस्व कर्मचारी जिसका न्युक्ति अमीन केसाथ विशेष कार्यों को करने का कार्य किया जाता था। 
  12. माल चपरासी - राजस्व कार्य में मद्दत करता था।  
भूमि की जानकारी - 




खालसा - मैराथन के अधीन भूमि

जमींदारी - अप्रत्यक्ष रूप से मैराथन का होता था

ताहूतदारी - बंजर जमीं को कृषि कार्य हेतु उपजाऊ बनाना।

तालुक दारी - बंजर जमीं को कृषि और आबादी के रूप में परिवर्तित करना

मराठा कालीन कर -

टाकोली - जमींदारी भूमि से कर प्राप्त करना

सायर कर - आयात निर्यात कर

कलाली कर- आबकारी कर

पंडरी कर - गैर कृषक कर

सेबाई कर - अपराधियों का जुर्माना

विविध जानकारी - 

मराठा कालीन कृषि वर्ष - जून से मई
नोट - वर्तमान में भारत का कृषि वर्ष - जुलाई  से जून
मराठा काल में राजभाषा मराठा था।
मराठा कालीन मुद्रा नागपुरी मुद्रा था
नोट - 1855 में अंग्रेजी मुद्रा का प्रारम्भ हुआ
  2 जनवरी 1952 से भारतीय रूपया प्रचलन में आयी
 दुरी मापक इकाई - मिल कोस धाप हाक

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