रायपुर के कलचुरी शासक



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छत्तीसगढ़ में कलचुरी वंश 14 शताब्दी में दो शाखा में बंट गयी पहला शाखा रतनपुर में शासन किया और दूसरा रायपुर क्षेत्र में शासन करने लगा। रायपुर शाखा के  नरेशों का शिलालेख रायपुर और खल्लारी से प्राप्त होता है।
 रायपुर से प्राप्त अभिलेख 1415 ई.का है।  ये अभिलेख रायपुर शाखा के कलचुरी शासक ब्रम्हदेव  के काल के है। इस शाखा के अंतिम शासक अमरसिंह है जिसे रघुजी भोसले  द्वितीय के हाथो 1750 ई में हार का सामना कारना पड़ा और अप्रत्यक्ष रूप से शासन करने लगा। जो की मराठा शासक के अधीन रह कर किया।
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                   1753 में अमरसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसकी  जागीर को हथियाने के लिए बिम्बाजी 1757 में छत्तीसगढ़ का शासक बना और अमरसिंह के पुत्र शिवराज सिंह को आजीविका के लिए महासमुंद तहसील के बड़गॉव को सौपा था।  1822 ई में बड़गॉव को भी छीन लिया गया और कलचुरियों की रही सही सत्ता भी ख़त्म हो गयी।
बाबू रेवाराम के इतिहास के अनुसार रतनपुर  के कलचुरी नरेश जगन्नाथ सिंह देव के दो पुत्र 1 वीरसिंह देव और 2 देव सिंह देव, रतनपुर की गद्दी में जेष्ठ पुत्र होने के कारण वीरसिंघ को मिली ,और इस तरह राज्य का बटवारा हो गया।
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देवसिंह देव को दक्षिण भाग मिला जो की शिवनाथ नदी के दक्षिण में स्थित था ,शिवनाथ नदी के  उत्तर और दक्षिण के हिसाब से बटवारा हुआ था।
मुख्य संस्थापक - केशव देव
राजधानी - खल्लारी (महासमुंद)
रायपुर शाखा के प्रमुख शासक -
  1. लक्ष्मीदेव - 1300 से 1340 तक 
  2. सिंघनदेव -1340 से 1380 तक 
  3. रामचंद्र देव - 1380 से 1400 तक 
  4. हरिब्रम्ह  देव - 1400 से 1420 तक 
  5. केशव देव - 1420 से 1438 तक 
  6. भुनेश्वर देव - 1438 से 1468 तक 
  7. मानसिंह देव - 1468 से 1478 तक 
  8. संतोष सिंह दे - 1478 से 1498 तक 
  9. सूरत सिंह देव - 1498 से 1518 तक 
  10. सैनीसिंह देव -  1518 से 1563 तक 

रायपुर कलचुरी शासन के अंतिम शासक अमरसिंह देव था जिसे बिम्बा जी द्वितीय ने हराया था।  
महत्वपूर्ण जानकारी - 
नारायण मंदिर का निर्माण - देवपाल नाम के मोची ने कराया था।  
नगर स्थापना - रायपुर नगर की स्थापना रामचंद्र देव ने अपने बेटे हरी ब्रम्हदेव राय के नाम पर किया।  
राजधानी परिवर्तन - हरी ब्रम्ह देव ने खल्लारी से रायपुर स्थापित किया था। 
 कलचुरियों की जानकारी तवारीख ए हैहय वंशीय राजा की पुस्तक से पुस्तक के लेखक -बाबू रेवाराम थे। 
कलचरी वंश की कुल देवी - गज लक्ष्मी 
कलचुरी उपासक थे - शिव (शैव ) 
कलचुरियों के  सिक्के पर -अंकित होता था - लक्ष्मी का 
कलचुरियों के ताम्रपत्र की शुरुवात - ॐ नमः शिवाय से 

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