साथियों इस पोस्ट में हम आपको छत्तीसगढ़ के इतिहास में कल्चुरी वंश की स्थापना और उनके द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य में शासन की स्थापना कब हुआ। कलचुरी कहा से आये।कब आये। इन सभी जानकारी को जानेंगे जो की प्रतियोगी परीक्षा जैसे CGPSC ,CGVYAPAM ,SSC ,पुलिस भर्ती ,रेलवे ,UPSC जैसे महत्वपूर्ण प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कलचुरी राजवंश कौन थे ?भारत में कलचुरी नरेशों ने 550 से 1750 तक राज्य किया। उत्तर तथा दक्षिण के प्रदेशों में आपना राज्य स्थापित किया। इस वंश की स्थापना वामनराजदेव ने किया था। इस वंश के आदि पुरुष के रूप में कृष्ण राजदेव को माना जाता है। ये पूर्णतः त्रिपुरी के निवासी थे। इन्हे कल्चुरी के आलावा इन्हे प्राचीन समय में अलग -अलग नमो से जाना गया। कटच्चुरी,कालत्सुरी ,सहस्त्रार्जुन ,हैहयवंशी ,चेदीयनरेश आदि मानों से जाने जाते थे।
कलचुरी कहां से आये थे?
कल्चुरी राजवंश प्राचीनतम राजवंशों में से एक है इनका प्राचीन स्थान महिष्मति और बाद में त्रिपुरी वर्तमान में तेवर है । इसी त्रिपुरी राजवंश के एक लहुरी शाखा ने कालांतर में छत्तीसगढ़ में राज्य स्थापित किया था।
छत्तीसगढ़ में इसकी स्थापना कब और किसने की ?
छत्तीसगढ़ में इसकी स्थापना कलिंगराज ने किया था। इसकी स्थापना 1000 ई में हुआ था।
कलचुरी को दो भागों में बाटा गया है जिसमे पहला रतनपुर शाखा ,और दूसरा रायपुर शाखा के है।
रतनपुर के कलचुरी राजवंश
रतनपुर की प्रसिद्दी चारो युगो में था। सतयुग में इसका नाम मणिपुर ,त्रेता में इसका नाम माणिकपुर ,द्वापर में हिरकपुर और कलयुग में रत्नपुर के नाम से प्रसिद्द है रतनपुर में कलचुर राजवंशों की लहुरी शाखा ने 10 वीं शताब्दी में राज्य स्थापित किया।
रतनपुर कलचुरी वंश के प्रमुख शासक शासनकाल - 1000 -से 1741 तक
धर्म - शैव
कुलदेवी - गजलक्ष्मी
राजकीय भाषा - संस्कृत
संस्थापक - कलिंगराज
प्रथम राजधानी - तुम्माण
कलिंग राज -
- शासन काल - (1000 - 1020 ई. तक )
- पुत्र - कोकल्ल
- इसने तुम्माण को जित कर उसे अपनी राजधानी बनाई
- उपाधि - परममहेश्वर की उपाधि धारण की थी।
- इनकी राजधानी तुम्माण थी।
- अमोदा से प्राप्त ताम्रपत्र से इनकी जानकारी मिलती है।
शासनकाल - 1020 से 1045 ई तक
राजधानी - तुम्माण
इन्होने त्रिपुरी राजा के ओडिशा अभियान में सहायत की थी। इस अभियान में उत्कल नरेश को पराजित किया था।
रत्नदेव प्रथम
शासनकाल -1045 से 1065 तक
उत्तराधिकारी - कमलराज का पुत्र
राजधानी -रतनपुर तुम्माण से स्थानांतरित कर रतनपुर
स्थापत्य - महामाया मदिर का मिर्माण , तुम्माण में शिव मंदिर का निर्माण , महिषासुर मर्दनी मंदिर लाफागढ़ (कोरबा)
साक्ष्य - जाज्ज्वल देव प्रथम के रतनपुर अभिलेख से प्राप्त होता है की कमल राज के पुत्र का नाम रत्नदेव
रतनपुर की स्थापना 1050 मे किया जिसका पूर्व में नाम कुबेरपुर था।
इनका विवाह कोमोमण्डल के अधिपति वज्जुक या वजूवर्मन की पुत्री नोनवल्ला से हुआ।
पृथ्वी देव प्रथम
शासनकाल - 1065 से 1090 तक
उत्तराधिकारी - रत्नदेव का पुत्र
उपाधि - सकल कोसलाधिपति (यही उपाधि पाण्डु वंश के शासक महाशिव तीवरदेव ने भी धारण की थी। )
अमोदा से प्राप्त ताम्रपत्र अभिलेखों में उन्हें 21 हजार ग्रामो का शासक बताया गयाहै।
निर्माण - इसने तुम्माण में पृथ्वीदेवेश्वर नमक मंदिर की निर्मण कराया ,रतनपुर में विशाल सरोवर का निर्माण कराया।
जाज्ज्वल देव प्रथम -
शासनकाल - 1090 से 1020 तक
उत्तराधिकारी - पृथ्वीदेव प्रथम
सिक्का - सोने का सिक्का चलाया
* प्रथम राजवंश व शासक था जिसने सोने के सिक्के चलाये।
*सोने के सिक्के में अंकित - श्री मज्जा जाज्ज्वल्य देव और गज
*पाली के शिवमंदिर का जीर्णोद्धार कराया
* नगर का स्थापना - जाज्ज्वलपुर (जांजगीर)
* बस्तर के छिन्दक नागवंशी राजा सोमेश्वर को पराजित किया।
ये भी पढ़े -छत्तीसगढ़ के बस्तर में छिन्दक नागवंश
रतन देव द्वितिय
शासनकाल - 1120 से 1135 तक
उत्तराधिकारी - जाज्ज्वल देव प्रथम का प्रथम पुत्र
अस्वीकार - त्रिपुरी के कलचुरी राजाओं की सत्ता से इंकार कर दिया जिसके पश्चात त्रिपुरी राजा गयाकर्ण ने रतनपुर में आक्रमण कर दिया
परिणाम - इस युद्ध में रतनदेव द्वितीय विजयी रहे और छत्तीसगढ़ में स्वतन्त्र कलचुरी राजवंश की स्थापना हुई।
इसके सामंत वल्लभ राज ने कोटगढ़ में तालाब का निर्माण कराया और अकलतरा में सूर्य पुत्र रेवन्त का मंदिर बनवाया।
पृथ्वी देव द्वितीय
शासनकाल -1135से 1165 तक
लेख -सबसे अधिक लेख प्राप्त हुए
सिक्का - चांदी का छोटा सिक्का चलाया
जीर्णोद्धार-राजीवलोचन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया इस कार्य के लिये पृथ्वी देव द्वितीय के सामंत जगतपाल देव ने कराया ।
विस्तार - उसके मंत्री और सेनापति जगतपाल देव ने सराहागढ़ (सारंगढ़) ,काकारय(कांकेर) भ्रमरकुट(बस्तर) को जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया।
जाज्ज्वल्य देव द्वितीय -
शासन काल - 1165से 1168 तक
इसने एक युद्ध लड़ा त्रिपुरी के कलचुरी शासक जयसिंह के साथ जिसमे जयसिंह परास्त हुआ और वापस लौट गया यह युद्ध शिवरीनारायण के मध्य हुआ था ।इसकी जानकारी शिवरीनारायण अभिलरख से प्राप्त होता है ।
सबसे कम समय राज्य किया ।
ये भी पढ़े - छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास
छत्तीसगढ़ प्रमुख क्षेत्रीय राजवंश
जगदेव -
शासनकाल -1168से 1178
जाज्ज्वल्य देव की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात रतनपुर में अशांति फैल गयी थी ।जिसके कारण उसके बड़े भाई जगदेव को वापस आकर शासन अपने हाथों में लिया ।
रत्नदेव तृतीय -
शासनकाल -1178 से 1198 तक
ये जगदेव के पुत्र थे इनकी मा का नाम सोमल्ल था ।
इनका उल्लेख खरौद के लखनेश्वर मंदिर की दीवार पर जेड शिलालेख से मिलती है ।
प्रतापमल्ल का शासन काल -
शासनकाल -1198 से 1222 तक
रत्नदेव का पुत्र था
इसने अल्पायु में राजकाज प्राप्त कर लिया इससे संबंधित तीन अभिलेख प्राप्त होते है । पेंड्रा बन्ध कोनारी और पवनि(भिलाइगढ़) प्राप्त होते है।
इसने तांबे की सिक्का चलाया जिसमे सिंह और कटार की आकृति बनवाई।
Note- प्रतापमल्ल के बाद के शासकों का इतिहास लिखित रूप से प्राप्त नही होता है। इसलिए इस समय को कई विद्वानों ने अंधायुग कहा है । लगभग ये 1222 से 1480 तक का समय रहा ।
बाहरेन्द्र साह
शासनकाल /1480 से1525 तक
इनका अन्यनाम बाहर साय भी था ।
राजधानी -इसने अपनी राजधानी रतनपुर से हस्तांतरित कर छुरी कोसगई में कर लिया
कोसगई माता का मंदिर भी बनवाया ।
कल्याण साय
शासनकाल - 1544से 1581 तक
समकालीन-अकबर के
राजस्व प्रणाली की शुरुवात- कल्याण से ने की थी
छत्तीसगढ़ का प्रथम बंदोबस्त अंग्रेज अधिकारी -mr.चिषम
जो अंग्रेज थे
CG का विभाजन - बंदोबस्त के आधार पर MR चिषम ने शिवनाथ नदी की उत्तर में 18 गढ़ मुख्यालय रतनपुर और दक्षिण में 18 गढ़ जिसका मुख्यालय रायपुर को बनाया गया ।
कल्याण साय अकबर के दरबार मे 8 वर्ष तक रहा ।
तख्तसिंह -
1689 तक था
इसने तखतपुर नगर की स्थापना की ।
राजसिंह
शासनकाल - 1689से 1712 तक
स्थापना -राजपुर जुनाशहर रतनपुर
राजसिंह औरंगजेब के समकालीन था ।
राजसिंह के दरबारी कवि गोपाल मिश्र था जिसने "खूब तमाशा " रचना किया
छत्तीसगढ़ का उल्लेख सबसे पहले साहित्य में हुआ ।
सरदारसिंह
शासनकाल - 1712 से 1732 तक
इनका कोई विशेष उल्लेखनिय घटना ज्ञात बनहि होती है।
रघुनाथसिंह
शासनकाल - 1732 से 1743 तक
कलचुरी वंश के अंतिम स्वतन्त्र शासक थे।
मराठा वंश की स्थापना -1742 में बिम्बाजी भोसले के सेनापति भास्कर पंत ने आक्रमण किया जिसमे रघुनाथ सिंह की हार हुई और वो मराठा प्रशासन प्रारम्भ हुआ
छत्तीसगढ़ की सामान्यज्ञान यहाँ पढ़े
छत्तीसगढ़ के बस्तर में काकतीय वंश
छत्तीसगढ़ में सोमवंश का शासनकाल
पृथ्वी देव प्रथम
शासनकाल - 1065 से 1090 तक
उत्तराधिकारी - रत्नदेव का पुत्र
उपाधि - सकल कोसलाधिपति (यही उपाधि पाण्डु वंश के शासक महाशिव तीवरदेव ने भी धारण की थी। )
अमोदा से प्राप्त ताम्रपत्र अभिलेखों में उन्हें 21 हजार ग्रामो का शासक बताया गयाहै।
निर्माण - इसने तुम्माण में पृथ्वीदेवेश्वर नमक मंदिर की निर्मण कराया ,रतनपुर में विशाल सरोवर का निर्माण कराया।
जाज्ज्वल देव प्रथम -
शासनकाल - 1090 से 1020 तक
उत्तराधिकारी - पृथ्वीदेव प्रथम
सिक्का - सोने का सिक्का चलाया
* प्रथम राजवंश व शासक था जिसने सोने के सिक्के चलाये।
*सोने के सिक्के में अंकित - श्री मज्जा जाज्ज्वल्य देव और गज
*पाली के शिवमंदिर का जीर्णोद्धार कराया
* नगर का स्थापना - जाज्ज्वलपुर (जांजगीर)
* बस्तर के छिन्दक नागवंशी राजा सोमेश्वर को पराजित किया।
ये भी पढ़े -छत्तीसगढ़ के बस्तर में छिन्दक नागवंश
शासनकाल - 1120 से 1135 तक
उत्तराधिकारी - जाज्ज्वल देव प्रथम का प्रथम पुत्र
अस्वीकार - त्रिपुरी के कलचुरी राजाओं की सत्ता से इंकार कर दिया जिसके पश्चात त्रिपुरी राजा गयाकर्ण ने रतनपुर में आक्रमण कर दिया
परिणाम - इस युद्ध में रतनदेव द्वितीय विजयी रहे और छत्तीसगढ़ में स्वतन्त्र कलचुरी राजवंश की स्थापना हुई।
इसके सामंत वल्लभ राज ने कोटगढ़ में तालाब का निर्माण कराया और अकलतरा में सूर्य पुत्र रेवन्त का मंदिर बनवाया।
पृथ्वी देव द्वितीय
शासनकाल -1135से 1165 तक
लेख -सबसे अधिक लेख प्राप्त हुए
सिक्का - चांदी का छोटा सिक्का चलाया
जीर्णोद्धार-राजीवलोचन मंदिर का जीर्णोद्धार कराया इस कार्य के लिये पृथ्वी देव द्वितीय के सामंत जगतपाल देव ने कराया ।
विस्तार - उसके मंत्री और सेनापति जगतपाल देव ने सराहागढ़ (सारंगढ़) ,काकारय(कांकेर) भ्रमरकुट(बस्तर) को जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया।
जाज्ज्वल्य देव द्वितीय -
शासन काल - 1165से 1168 तक
इसने एक युद्ध लड़ा त्रिपुरी के कलचुरी शासक जयसिंह के साथ जिसमे जयसिंह परास्त हुआ और वापस लौट गया यह युद्ध शिवरीनारायण के मध्य हुआ था ।इसकी जानकारी शिवरीनारायण अभिलरख से प्राप्त होता है ।
सबसे कम समय राज्य किया ।
ये भी पढ़े - छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास
छत्तीसगढ़ प्रमुख क्षेत्रीय राजवंश
जगदेव -
शासनकाल -1168से 1178
जाज्ज्वल्य देव की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात रतनपुर में अशांति फैल गयी थी ।जिसके कारण उसके बड़े भाई जगदेव को वापस आकर शासन अपने हाथों में लिया ।
रत्नदेव तृतीय -
शासनकाल -1178 से 1198 तक
ये जगदेव के पुत्र थे इनकी मा का नाम सोमल्ल था ।
इनका उल्लेख खरौद के लखनेश्वर मंदिर की दीवार पर जेड शिलालेख से मिलती है ।
प्रतापमल्ल का शासन काल -
शासनकाल -1198 से 1222 तक
रत्नदेव का पुत्र था
इसने अल्पायु में राजकाज प्राप्त कर लिया इससे संबंधित तीन अभिलेख प्राप्त होते है । पेंड्रा बन्ध कोनारी और पवनि(भिलाइगढ़) प्राप्त होते है।
इसने तांबे की सिक्का चलाया जिसमे सिंह और कटार की आकृति बनवाई।
Note- प्रतापमल्ल के बाद के शासकों का इतिहास लिखित रूप से प्राप्त नही होता है। इसलिए इस समय को कई विद्वानों ने अंधायुग कहा है । लगभग ये 1222 से 1480 तक का समय रहा ।
बाहरेन्द्र साह
इनका अन्यनाम बाहर साय भी था ।
राजधानी -इसने अपनी राजधानी रतनपुर से हस्तांतरित कर छुरी कोसगई में कर लिया
कोसगई माता का मंदिर भी बनवाया ।
कल्याण साय
शासनकाल - 1544से 1581 तक
समकालीन-अकबर के
राजस्व प्रणाली की शुरुवात- कल्याण से ने की थी
छत्तीसगढ़ का प्रथम बंदोबस्त अंग्रेज अधिकारी -mr.चिषम
जो अंग्रेज थे
CG का विभाजन - बंदोबस्त के आधार पर MR चिषम ने शिवनाथ नदी की उत्तर में 18 गढ़ मुख्यालय रतनपुर और दक्षिण में 18 गढ़ जिसका मुख्यालय रायपुर को बनाया गया ।
कल्याण साय अकबर के दरबार मे 8 वर्ष तक रहा ।
तख्तसिंह -
1689 तक था
इसने तखतपुर नगर की स्थापना की ।
राजसिंह
शासनकाल - 1689से 1712 तक
स्थापना -राजपुर जुनाशहर रतनपुर
राजसिंह औरंगजेब के समकालीन था ।
राजसिंह के दरबारी कवि गोपाल मिश्र था जिसने "खूब तमाशा " रचना किया
छत्तीसगढ़ का उल्लेख सबसे पहले साहित्य में हुआ ।
सरदारसिंह
शासनकाल - 1712 से 1732 तक
इनका कोई विशेष उल्लेखनिय घटना ज्ञात बनहि होती है।
रघुनाथसिंह
शासनकाल - 1732 से 1743 तक
कलचुरी वंश के अंतिम स्वतन्त्र शासक थे।
मराठा वंश की स्थापना -1742 में बिम्बाजी भोसले के सेनापति भास्कर पंत ने आक्रमण किया जिसमे रघुनाथ सिंह की हार हुई और वो मराठा प्रशासन प्रारम्भ हुआ
छत्तीसगढ़ की सामान्यज्ञान यहाँ पढ़े
छत्तीसगढ़ के बस्तर में काकतीय वंश
छत्तीसगढ़ में सोमवंश का शासनकाल
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छत्तीसगढ़ का इतिहास
नामकरण में क्या कलाल नही है ?
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