छत्तीसगढ़ के प्रमुख क्षेत्रीय राजवंश
छत्तीसगढ़ के पूर्व मध्यकाल में क्षेत्रीय राजवंशों ने राज किया जिसमे अलग-अलग क्षेत्रें में अलग-अलग राजवंशों ने अपना राज्य स्थापित किया था जिसकी जानकारी हमें स्तंभ लेख ,ताम्रपत्र ,शिलालेख ,प्राप्त सिक्के , पुरातात्विक स्थल ,साहित्य एवं अन्य ऐतिहासिक स्थानों से प्राप्त होता है।
महत्वपूर्ण क्षेत्रीय राजवंश जिन्होंने छत्तीसगढ़ में राज किया -- नलवंश
- राजष्रितुल्य वंश
- शरभपूरिय राजवंश
- दक्षिण कोसल में पाण्डुवंश
- बस्तर नागवंश
- सोमवंश
- कलचुरी वंश
- पाण्डु वंश
- पर्वतध्दारक वंश
भारत के इतिहास के आधार पर वायु पुराण और ब्राह्मण पुराण के आधार पर नाल शासकों को पौराणिक वंश है जिनकी शासन कोसल प्रदेश में था ।पुरातात्विक आधार पर दक्षिण कोशल का इतिहास चौथी शताब्दी से सुरु हो जाती है जिसमे सबसे पहले सूत्रपात इलाहाबाद की समुद्रगुप्त की प्रस्सति से प्रारम्भ होता है।
शिलालेखों ,ताम्रपत्रों ,सोने के मुद्रासे पता चालता है की बस्तर में सबसे पहले नलवंश के शासकों का राज प्रारम्भ हुआ ।इसके शासन काल कब प्रारम्भ हुआ कब तक रहा राज्य की सीमा कहा से कहा तक था इसपर विद्वानों का मतैक्य नही है ।305 ईसवी में महाकान्तर पर व्याघ्रराज के शासन होने के प्रमाण मिले है । बस्तर में भी इनके शासन का प्रारंभ माना जा सकता है । इनकी राजधानी पुस्करी है । वर्तमान बस्तर की सीमा से लगे पुस्कर नगर था ।
नल वंश की शासन काल - चौंथी से बारहवीं शताब्दी नलवंश की जानकारी - पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख से
राजधानी - उड़ीसा -कोटपुट ,छत्तीसगढ़ - पुष्करी (वर्तमान -भोपाल पटनम )
शासन क्षेत्र - बस्तर
नलवंशी शासक-
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वराहराज -
शासन काल -400 - 440 ई.
भावदत्त वर्मन -
राजर्षितुल्य कुल वंश -
शासन काल -400 - 440 ई.
- नलवंश के संस्थापक मने जाते है
- कोंडागांव तहसील के एंडेगा ग्राम में वराह राज के 29 सिक्के प्राप्त हुए है
- मिराषि के लिपि शास्त्र के अनुसार वराह राज को भावदत्त का पूर्वज मन गया है ।
भावदत्त वर्मन -
- शासन काल - 440-465ई.
- नलवंश की सबसे प्रतिभाशाली शासक भवदत्त वर्मन था। इसकी जानकारी इतिहासकारों को इसके द्वारा जारी किये गये सिक्कों से प्राप्त होता है।
- इन्होने वाकाटकों से युद्ध कर उन्हें कोसल से राज्य से खदेड़ दिया और इनकी साम्राज्य का विस्तार किया और बरार से कोरापुट तक अपना अधिकार कर लिया।
- भवदत्त का ताम्रपत्र अमरावती जिले के मोरशि अंचल से प्राप्त हुआ जिसमे उसके साम्राज्य की जानकारी और उसके पत्नी(अकाली भट्टारिका ) की जानकारी मिलती है।
- भवदत्त ने महाराजा की उपाधि धारण किया था।
- ये शंकर के उपाशक थे।
- शासन काल - 460 -475 ई तक
- इसकी जानकारी केसरीबेड़ा ताम्रपत्र से मिलती है।
- इसे वाकाटक शासक पृथ्वी सेन द्वितीय ने हराया था। और अर्थपति वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारागया।
- अर्थपति ने भट्टारक की उपाधि धारण की थी। जो की पल्लव वंश की उपाधि है।
- ये अर्थपति का भाई था उसके मृत्यु के पश्चात् पुस्कारि की राजगद्दी पर बैठा।
- शासन काल - 475 से 500 ई.
- इसने वाकाटक नरेश के द्वारा पुष्करी को नष्ट कर देने के बाद पुनः निर्माण कर राजधानी का नाम पुस्कारगढ़ पोड़ागढ़ में परिवर्तित हो गया।
- स्कन्दवर्मा ने पोड़ागढ़ में विष्णु मंदिर का निर्माण कराया।
- पोड़ागढ़ शिलालेख नलों का पहला शिलालेख है।
परावर्तित नल नरेश -
- स्कन्द वर्मा के बाद उसके पुत्र नंदराज राजा बना जिसकी शिक्षा -दीक्षा नालंदा में हुई थी।
- नंदराज के बाद उसके पुत्र फिर उसके पौत्र पृथ्वीराज राजा बने।
- पृथ्वीराज का शासन काल 605 से 630 ई. मानागया है।
- इसके पश्चात् विरुपाक्ष राजा बना इसके पश्चात् इसके पुत्र विलासतुंग राजा हुआ
- विलासतुंग ने राजिम में विष्णु मंदिर का निर्माण कराया।
- विलासतुंग ने 7 वी ही राजीव लोचन मंदिर का निर्माण कराया।
- राजिम अभिलेख में विरुपाक्ष और पृथ्वीराज के बारे में जानकारी मिलती है।
- रिद्धपुर ताम्रपत्र -भवदत्त
- केश्रीबेड़ा ताम्रपत्र - अर्थपति
- राजिम अभिलेख - विलासतुंग
- पोड़ागढ़ शिलालेख - स्कंदगुप्त
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- शासन काल - पांचवी से छठी सताब्दी तक मन जाता है।
- इसा वंश के संस्थापक - शूरा को माना जाता है।
- शासन क्षेत्र राजधानी - आरंग
- इसवंश की राजमुद्रा सिंह थी जिसका जिक्र आरंग ताम्राभिलेख से मिलता है।
- ये गुप्त वंशी राजाओ के अधीनता स्वीकार किये थे इन्हे गुप्त शासकों का सामंत भी कहा गया है गया है।
- जानकारी के स्रोत - भीमसेन द्वितीय के आरंग ताम्रपत्र अभिलेख से प्राप्त होता है
- छः शासकों का वर्णन मिलता है -शूरा , दायित्व प्रथम ,विभिषण ,भीमसेन प्रथम ,दायित्व द्वितीय , भीमसेन द्वितीय थे।
शरभपूरिय राजवंश -
इस वंश को अमरार्या या अमराज भी कहा जाता है।
संस्थापक -शरभराज
शासनकाल - 6 वीं शताब्दी
साक्ष्य -भानुगुप्त का एरण अभिलेख
राजधानी - शरभपुर
उपराजधानी - श्रीपुर (सिरपुर )
- इसा वंश के शासक प्रसन्नमात्र ने प्रसन्नपुर (मल्हार )को बसाया सोने और चांदी के सिक्के चलाया।
- प्रवरराज प्रथम ने अपनी राजधानी श्रीपुर में स्थापित किया।
- इसा वंश के अंतिम शासक - प्रवरराज द्वितीय थे।
- प्रवरराज द्वितीय को हराकर सुदेवराज के सामंत इन्द्रबल ने पाण्डुवंश की नीव राखी।
पाण्डुवंश -
संस्थापक - उदयिन
राजधानी - सिरपुर
राज्य में इनकी दो शाखाएं थी।
प्रथम - मैकल श्रेणी में स्थित पाण्डुवंश जो की मूल शाखा थी
द्वितीय - दक्षिण कोसल के सोमवंशी जो की लिंगाधिपति की उपाधि धारण करते थे।
शासन काल - छठवीं शताब्दी में
आदिपुरुष -उदयन (इसका उल्लेख कालंजर शिलालेख mp झाँसी)
वैष्णवधर्म के अनुयायी थे।
प्रमुख शासक -
महाशिव तीवर देव
पाण्डु वंश का उत्कर्ष काल मन जाता है।
उपाधि - सकलकोसलाधिपति
चन्द्रगुप्त
साक्ष्य - लक्ष्मण मंदिर के गर्भगृह के शिलालेख से (सिरपुर)
हर्षगुप्त
विवाह - मगध के राजा सूर्य वर्मा की पुत्री से (मौखरि वंश )
पत्नी - वासटा देवी
प्रमुख निर्माण - सिरपुर की लक्ष्मण मंदिर लाल ईंटों से
निर्माणकर्ता - वासटा देवी हर्षगुप्त की पत्नी
महाशिवगुप्त बालार्जुन
समय - 595 से 655 ई.
यात्री -चीनी यात्री व्हेनसांग (बौद्ध धर्म )६३९-६४० ई.
छत्तीसगढ़ का उल्लेख - व्हेनसांग की रचना सी.यु.की. में किया
समकालीन - हर्षवर्धन के वर्धन वंश
साक्ष्य - 27 ताम्रपत्र सिरपुर
छत्तीसगढ़ का सवर्ण युग इस काल को कहा जाता है।
इसकाल की अद्भुत धातु प्रतीमा - तारादेवी
प्रमुख बौद्ध धर्म केंद्र - सिरपुर
परम महेश्वर की उपाधिधारण की।
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छत्तीसगढ़ का इतिहास