गुप्त काल के मंदिर /Ancient temple of Gupta period


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साथियों इससे पहले आपको हमारे द्वारा गुप्तकाल के इतिहास के बरिमे जानकारी दी गयी है। इसके बाद गुप्तकालीन प्रश्नोत्तरी जिसमे गुप्त कालीन महत्वपूर्ण  प्रश्नो के उत्तर आपको दिया गया है।  और आज हम गुप्तकालीन प्रमुख मदिर के बारे में जानेगे  

तो चलिए साथियों आज हम बताने जा रहे है ये टॉपिक बहुत ही महत्वपूर्ण है।"गुप्तकालीन प्राचीन मंदिर"  

गुप्त कालीन प्रमुख मंदिर  -

गुप्त काल में मंदिर बनाने का विकास प्रारम्भ हो गया था।  गुप्त काल स्थापत्य काला, साहित्य और संस्कृति के लिए स्वर्ण युग कहा गया है।

1. एरण का विष्णु मंदिर - 

एरण का विष्णु मदिर मध्यप्रदेश के सागर जिले से 75 किमी की दुरी पर स्थित है। ये बिना नदी के किनारे स्थित है। ये गुप्त कालीन महत्वपूर्ण विष्णु मंदिर में से एक है। जिसमे एक विष्णु प्रतिमा जिसकी ऊंचाई लगभग 10 फिट है। एक वराह  की प्रतिमा जिसके पुरे अंग में चित्रकारी की गयी है। और एक गरुड़ स्तम्भ है। महेश्वर और त्रिपुर में पाये गये  अवशेषों के समकालीन  गया है।



2. भूमरा का शिव मंदिर -

भूमरा सतना जिला मध्यप्रदेश में स्थित है। इसके खोज का श्रेय राखालदास बनर्जी को  जाता है। इस मंदिर का निर्माण 5 वी शताब्दी का माना जाता है।  इस मंदिर की खोज 1920 में किया गया है। इसमें एक मुखी शिवलिंग स्थापित है।

3. साँची का मंदिर -

ये मदिर गुप्तकाल  का मदिर है और भारत के प्राचीन मंदिर में से एक है इस मदिर की खोज ब्रिटिश अफसर टेलर ने 1818 ई में की थी।

ये मदिर गुप्त कल में बने गया था। इसे उदयगिरी के गुफाओं के समकालीन मन जाता है। इसका निर्माण चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय के समय बनवाया था।

4. पिपरिया का विष्णु मंदिर - पिपरिया सतना जिला मध्यप्रदेश

5 तिगवा का कंकाली देवी मंदिर -

ग्राम -तिगवा  जिला -जबलपुर  मध्यप्रदेश

6 तिगवा का विष्णु मंदिर - 

ग्राम -तिगवा  जिला जबलपुर मध्यप्रदेश

7 नचना कुठार का पार्वती मंदिर -

यह पार्वती मंदिर कचना कुठार जिला पन्ना मध्यप्रदेश में स्थित है।   इस मंदिर में किसी प्रकार का कोई लेख नहीं मिलता इसके सपाट छत और कला शैली के आधार पर इस मंदिर को गुप्त कालीन  मन गया है।  इस मंदिर का निर्माण पांचवी शताब्दी का मन जाताहै।
जनरल कनिंघम के अनुशार इसे देवी पारवती का मंदिर माना गया है।  मंदिर का गर्भगृह अलंकरणों से  सुसज्जित है ये मंदिर गुप्त काल का प्रतिनिधित्व करता है।

8 देवगढ़ का दशावतार मंदिर -



देवगढ़ की दशावतार मंदिर देवगढ़ जिला ललितपुर उत्तर प्रदेश में स्थित है। देवगढ़ बेतवा नदी के तट पर स्थित है।   ये मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। जिसमे भगवान विष्णु के पुरे दस अवतार को चित्रित किया गया है।

 ये मंदिर वास्तु कला और शिल्प काला का मत्वपूर्ण उदहारण प्रस्तुत करता है। इस मंदिर में विष्णु के दस अवतार को अलग -अलग शिल्प के रूप में उकेरा गया है। इस मंदिर के द्वार पर गंगा -जमुना की नक्काशी की गयी है।

यहाँ की मूर्तियों में प्राचीन भारतीय धार्मिक के सभी चिन्हों को उकेरा गया है जिसमे शंख ,कमल ,हाथी ,को चित्रित किया गया है।  यह मंदिर लगभग 6 वी शांति मन गया है।  जिस समय गुप्त वंश का महत्वपूर्ण समय था।

9 मढ़ी का मंदिर -

 ये मंदिर ग्राम मढ़ी जिला जबलपुर मध्यप्रदेश में स्थित है।


10 नागोद का शिव मंदिर -

नागोद जिला सतना मध्यप्रदेश में स्थित है

11 खोह का शिव मंदिर -

मध्यप्रदेश में सतना जिला के  उचेहरा तहसील में खोह एक प्राचीन गाँव है। जहाँ पर गुप्त कालीन शिव मंदिर और ताम्रपत्र प्राप्त हुए है ये मंदिर गुप्त काल के स्थापत्य कला के लिए महत्वपूर्ण है।  यहाँ कुल 8 दानपात्र प्राप्त हुए है जिसमे ब्राह्मणो को दिए गए दान का उल्लेख मिलता है।

12 मणिनाग मंदिर-


राजगीर जिला - नालंदा  बिहार  

इस मंदिर का अति  प्राचीन इतिहास बताया जाता है इस मंदिर को महाभारत काल  जोड़ा जाता है। यहाँ पर महाभारत काल में जारासंध पूजा किया करते थे।

 ये स्थान मणियार मठ के नाम से जाना  जाता है। इसे पहले नागों का तीर्थ माना जाता था। खुदाई से भी नागों के फन की  प्रतिमाये अवशेष प्राप्त हुए है। यहाँ एक मणिनाग का मंदिर है।  यहाँ गुप्त  कलीना अवशेष  प्राप्त हुए।
पालीभाषा के ग्रंथों में इस  स्थान  का नाम मणिमाला है।

13 भीतरगाँव का कृष्ण मंदिर -

भीतरगांव जिला कानपुर उत्तरप्रदेश 
गुप्तकालीन वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है ये मंदिर ईंटों से बानी हुए है और इसका एक -एक ईंट में आकर्षक आलेख प्राप्त हुए है।

14 मुकुंदरा का मंदिर -

ये मंदिर मुकुंदरा जिला कोटा राजस्थान में स्थित है। जिसे भीम की चौरी  के नाम से जाना जाता है जो गुप्त कालीन वास्तुशिल्प  कला का माना जाताहै। 

15 सिरपुर का लक्षमण मंदिर -



सिरपुर का मंदिर सिरपुर जिला -महासमुंद  छत्तीसगढ़ में स्थित है। 
ये मंदिर गुप्त कालीन समय का साक्ष्य माना जाता है।  इस मंदिर का निर्माण वासटा  देवी ने अपने पति हर्षगुप्त की याद में बनवाया था।  

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